अनुभव कथन


पुकार सुन दौडनेवाले बापू  - अनिल रेणूकादास
एक बार इस सदगुरु को, मेरे बापू को "अपना" मान लिया, तो फिर ये बापू आपकी पुकार सुनते ही दौडकर आने के लिए तत्पर रहते है। इस बात की पुष्टी करती है, दि. ४ जुलाई ०९ की यह घटना ।
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